इस बात को नोट करें कि मूल्य का श्रम-सिद्धांत यह नहीं कहता कि किसी जिन्स का मूल्य इसमें निहित श्रम की वास्तविक मात्रा द्वारा निर्धारित होता है.
2.
“राजनितिक अर्थशास्त्र मालों का नहीं मनुष्यों के आपसी संबंधो का वर्णनं करता है. ”-एंगेल्ज़ पूंजीवाद के अधीन किस प्रकार मेहनतकश जनता का शोषण किया जाता है और पूंजीवाद समाज कैसे चलता है को समझने के लिए राजनितिक अर्थशास्त्र में मूल्य का श्रम-सिद्धांत है.
3.
इस प्रकार उसका साहूकार या दुकानदार या भूपति या कर संग्रह करने वाले द्वारा दोबारा शोषण नहीं किया जा सकता बेशक वे भी उसे लूट सकते हैं और धोखा दे सकते हैं परंतु यह मार्क्सवाद के मूल्य का श्रम-सिद्धांत के बाहर अलग विषय है.
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ऐसा कहना हवा में बात करना होगा कि कीमत खर्च जमा “सामान्य मुनाफे” पर निर्धारित होती है, लेकिन सामान्य मुनाफा है क्या? रिवाज द्वारा लागू की गई कोई चीज़! केवल यही है जो दिखाई देता है.श्रम पर आधारित मूल्य और अतिरिक्त मूल्य के कारण केवल मूल्य का श्रम-सिद्धांत ही प्रयाप्त रूप से विश्लेषण कर सकता है कि क्यों मुनाफे की सामान्य दर, कहने के लिए, 10 है बजाय 15 के.